क्या आपको पता है कि हमारी पूरी पृथ्वी में जितनी बिजली इस्तेमाल की जाती है, उसके 10 हजार गुना ज्यादा पावर सौर ऊर्जा (सोलर एनर्जी) जनरेट करती है। अब आप खुद ही सोचिए कि अगर पूरी दुनिया में सोलर पैनल लगवा दिए जाएं तो पूरी दुनिया का नक्शा ही बदल जाएगा। न सिर्फ हमारे पास पर्याप्त मात्रा में बिजली होगी, बल्कि बिजली के दर भी बहुत कम होंगे।
लेकिन ऐसा क्यों नहीं हो पा रहा है? क्यों पूरी दुनिया प्रकृति की इतनी अनमोल चीज को यूं ही जाया कर रही है? ऐसे में बहुत से लोग अपने घर में सोलर पैनल लगवाते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोगों को यह पता होता है कि सोलर पैनल कैसे काम करता है? इस लेख में हम आपके इसी सवाल का उत्तर देने वाले हैं। हम आपको सोलर पैनल कैसे काम करता है (how solar panel works) के बारे में विस्तार से बताने वाले हैं। तो इस लेख को अंत तक पूरा पढ़िए।
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सोलर पैनल कैसे काम करते है?
जैसा कि हमने आपको बताया था कि सौर ऊर्जा कितनी ज्यादा कारगर साबित हो सकती है, जो पूरी दुनिया की बिजली की समस्या को खत्म कर सकती है। लेकिन सबसे पहले सवाल ये आता है कि आखिर सोलर पैनल कैसे काम करते हैं? यानि कि कैसे सोलर पैनल सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलते हैं।
इस चीज को जानने के लिए सबसे पहले हम आपको यह बता दें कि सोलर पैनल सोलर सेल से बनते हैं और सबसे ज्यादा कॉमन सोलर सेल सिलिकॉन को माना जाता है, जो कि एक तरह का सेमीकंडक्टर है। यह हमारी पृथ्वी में पाया जाने वाला दूसरा सबसे प्रचुर मात्रा में मौजूद एलिमेंट है।
दोस्तों, सोलर सेल में क्रिस्टल और सिलिकॉन कंडक्टिव लेयर्स सैंडविच की तरह मौजूद होते हैं। हर सिलिकॉन आइटम अपने पडोसी सिलिकॉन एटम से चार मजबूत बॉन्ड से जुड़ा होता है, जो इलेक्ट्रॉन्स को अपनी जगह पर रखते हैं।
साइंटिफिक रूप से सोलर पैनल काम कैसे करते है?
दोस्तों, यह काफी साइंटिफिक चीज है, लेकिन हम आपको इसे बहुत साधारण भाषा में समझाने की कोशिश करेंगे।
हर सिलिकॉन सोलर सेल दो अलग-अलग तरह की परतों का उपयोग करता है:
- एन-टाइप सिलिकॉन: इसमें अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन मौजूद होते हैं।
- पी-टाइप सिलिकॉन: इसमें इलेक्ट्रॉनों के लिए अतिरिक्त जगह मौजूद होती है।
जब ये दोनों अलग अलग तरह के सिलिकॉन लेयर्स मिलते हैं तो इलेक्ट्रॉन पीएम जंक्शन में घूमते हैं, जिसमें एक तरफ इलेक्ट्रॉन पॉजिटिव चार्ज छोड़ते हैं तो दूसरी तरफ नेगेटिव चार्ज क्रिएट करते हैं। अगर आप सोलर लाइट के बारे में सोचेंगे तो आपको ये खयाल आएगा कि इसमें बहुत ही छोटे छोटे पार्टिकल्स मौजूद होते हैं जिन्हें फोटोन कहा जाता है और सूरज की रौशनी के साथ निकलते हैं।
ऐसे में दोस्तों ये फोटोन जब काफी हाई एनर्जी के साथ सिलिकॉन सेल्स से जाकर मिलते हैं तो इलेक्ट्रॉन के बॉन्ड से जाकर टकराते हैं जिसकी वजह से होल बन जाता है और फिर नेगेटिव चार्ज इलेक्ट्रॉन पूरी तरह से मूवमेंट करने के लिए फ्री हो जाता है। इसी वजह से जितने भी इलेक्ट्रॉन हैं वो सेल के टॉप में मौजूद मोटी मेटल की फिंगर्स में जाकर कलेक्ट हो जाते हैं और वहां से ये बाहरी सर्किट में बहते हैं, और तब जाकर इलेक्ट्रिक एनर्जी बनती है।
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साधारण भाषा में सोलर पैनल का कार्य
वैसे, ये तो काफी साइंटिफिक भाषा हो गई। लेकिन अगर हम आपको आसान भाषा में समझाएं, तो सिलिकॉन एक सेमीकंडक्टर है। इसका मतलब है कि यह कंडक्टर और इंसुलेटर, दोनों का काम करता है। इसमें दो तरह के टाइप होते हैं: पी और एन।
जैसा कि आप नाम से समझ गए होंगे, पी टाइप यानी पॉजिटिव और एन टाइप यानी नेगेटिव। जब दोनों को साथ में रखा जाता है और जब सूरज की रोशनी उन पर पड़ती है, तो पॉजिटिव से नेगेटिव इलेक्ट्रॉन प्रवाहित होते हैं। आपको पता होगा कि इलेक्ट्रॉन बिजली के बहुत ही सूक्ष्म कण होते हैं जो जब मूव करते हैं तो बिजली पैदा होती है। यानी कि उसी चीज को हम विद्युत ऊर्जा कहते हैं।
अब सूरज से निकलने वाली रोशनी से जो छोटे-छोटे कण यानी फोटोन निकलते हैं, वो सिलिकॉन के सोलर पैनल पर पड़ते हैं। इस प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉन मूव करते हैं और फिर बिजली पैदा होती है। हमें नहीं लगता कि अब सोलर पैनल के काम करने के तरीके को लेकर किसी को भी शक होगा, क्योंकि हमने साइंटिफिक तरीके से लेकर हमारी देसी भाषा में आपको सब समझा दिया है।
सोलर पैनल का अधिक इस्तेमाल क्यों नहीं होता।
अब इसी चीज से जुड़ी एक और बात है। वो ये कि अगर सोलर पैनल से बिजली इतने अच्छे तरीके से जनरेट हो सकती है, तो फिर पूरी दुनिया में सोलर पैनल क्यों नहीं लगाए जाते? क्योंकि इससे नेचुरल रिसोर्स का इस्तेमाल भी हो जाएगा और बिजली का जो इतना भारी रेट लोगों को चुकाना पड़ता है, वो भी कम हो जाएगा।
तो दोस्तों, जवाब के तौर पर हम आपसे सिर्फ इतना कहना चाहेंगे कि इन सब चीजों को करने के लिए हर देश की सहमति और चीजों की सही व्यवस्था होना बहुत जरूरी है। क्योंकि अगर भारी मात्रा में सोलर पैनल बनने लगेंगे, तो उनकी कार्यक्षमता यानी काम करने का सही तरीका भी खराब हो सकता है। क्योंकि अभी भी हम पूरी तरह से निश्चित तौर पर नहीं कह सकते कि एक सोलर पैनल कितने समय तक चल सकता है।
इसकी वजह से जब कभी भी किसी के घर में सोलर पैनल अचानक से खराब हो जाएगा, तो लोगों को बिजली की काफी समस्या देखनी पड़ेगी। अगर अच्छी और बेहतर क्वालिटी के साथ सोलर पैनल बनाए जाएं, तो उनके लिए काफी महंगा खर्चा आएगा, जो पूरी दुनिया को मिलकर उठाना होगा। चीज मुश्किल भले ही लग रही है, लेकिन नामुमकिन नहीं है। और अगर ऐसा हो जाता, तो वाकई में क्रांति सी आ जाएगी।
निष्कर्ष
दोस्तों, ऊपर दिए गए लेख में हमने आपको विस्तार से बताया है कि सोलर पैनल कैसे काम करते हैं। यदि आपको अभी तक इस बारे में जानकारी नहीं है और आप जानना चाहते हैं कि सोलर पैनल कैसे काम करता है, तो ऊपर दिए गए लेख को ध्यान से पूरा पढ़ें। मुझे उम्मीद है कि इस लेख से आपको अच्छी जानकारी मिलेगी। इस लेख को पढ़ने के लिए धन्यवाद।
Frequently Asked Questions
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सोलर सेल किस चीज से बने हुए होते हैं?
सोलर सेल सिलिकॉन के द्वारा बनाए जाते हैं।
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सोलर पैनल को कैसे बनाया जाता है?
सोलर पैनल को छोटे-छोटे सोलर सेल को जोड़कर बनाया जाता है।
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सिलिकॉन इंसुलेटर है या कंडक्टर?
सिलिकॉन एक सेमीकंडक्टर है, यानी यह कंडक्टर का भी काम करता है और इंसुलेटर का भी काम करता है।
दोस्तों में इस सोलर ब्लॉग का एडमिन हूँ, इस ब्लॉग पर में रोजाना सोलर पैनल, सोलर ऊर्जा, सोलर योजना और सोलर प्रोडक्ट्स से जुडी जानकारी शेयर करता हूँ।